परिचय :
पुनर्नवा का अभिप्राय है यह है कि जो रसायन व रक्तवर्धक होने से शरीर को फिर से नया जैसा बना दे, उसे पुनर्ववा कहते हैं। पुनर्नवा का सूखा पौधा बारिश के मौसम में नया जीवन
पुनर्नवा का अभिप्राय है यह है कि जो रसायन व रक्तवर्धक होने से शरीर को फिर से नया जैसा बना दे, उसे पुनर्ववा कहते हैं। पुनर्नवा का सूखा पौधा बारिश के मौसम में नया जीवन
पाकर फूलने-फलने लगता है। पुनर्नवा पूरे भारत में खासकर गर्म प्रदेशों में बहुतायत से प्राप्त होता है। हर साल बारिश के मौसम में नए पौधे निकलना और गर्मी के मौसम में सूख जाना इसकी खासियत होती है। पुनर्नवा की 2 प्रकार की जातियां लाल और सफेद पाई जाती हैं। इनमें रक्त (खून) जाति वनस्पति का प्रयोग अधिकता से औषधि के रूप में किया जाता है। पुनर्नवा का कांड (तना), पत्ते, फूल सभी रक्त (खून या लाल) रंग के होते हैं। फलों के पक जाने पर वायवीय भाग सूख जाता है। परंतु भूमि में पड़ी रहती है, जो बारिश के मौसम में फिर से उग आती है।
स्वाद : सफेद पुनर्नवा का रस पीने में मधुर (मीठा), तीखा और कषैला होता है।
स्वरूप : पुनर्नवा एक लेटी हुई छत्ताकार जड़ होती है, यह बारिश के मौसम में पैदा होकर बढ़ती है और हेमन्त ऋतु के तुषार से सूख जाती है। श्वेत सांठ के पत्ते, डंठल सफेद तथा लाल होते हैं। रक्त (लाल) के लाल होते हैं। लाल पुनर्नवा के पत्ते श्वेत की अपेक्षा चक्राकार न होकर कुछ लंबे होते हैं पुनर्नवा गांवों में सब्जी के काम में लाई जाती है। पुनर्नवा का पौधा 3 से 6 फुट ऊंचा होता है, जिसका तना लाल रंग लिए कड़ा पतला और गोल होता हैं। इसके जड़ों पर तना कुछ मोटा होता है। पुनर्नवा की शाखाएं अनेक और पत्ते छोटे, बड़े 2 तरह के होते हैं। पुनर्नवा के पत्ते कोमल, मांसल, गोल या अंडाकार और निचला तला सफेद होता है। इसमें पुष्प (फूल) सफेद या गुलाबी छोटे-छोटे, छतरीनुमा लगते हैं। फल आधा इंच के छोटे, चिपचिपे बीजों से युक्त तथा पांच धारियों वाले होते हैं। पुनर्नवा के फूलों और फलों की बहार सर्दी के मौसम में आती है। इसकी जड़ 1 फुट लंबी, उंगली जितनी मोटी, गूदेदार, 2 से 3 शाखाओं से युक्त, तेजगंध वाली तथा स्वाद में तीखी होती है। इसे तोड़ने पर इसमें से दूध बहने लगता है। औषधि प्रयोग के लिए इसकी जड़ और पत्ते काम में आते हैं।
स्वभाव : पुनर्नवा खाने में ठंडी, सूखी और हल्की होती है।
गुण : श्वेत पुनर्नवा भारी, वातकारक और पाचनशक्तिवर्द्धक है। यह पीलिया, पेट के रोग, खून के विकार, सूजन, सूजाक (गिनोरिया), मूत्राल्पता (पेशाब का कम आना), बुखार तथा मोटापा आदि विकारों को नष्ट करती है। पुनर्नवा का प्रयोग जलोदर (पेट में पानी का भरना), मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में परेशानी या जलन), घाव की सूजन, श्वास (दमा), हृदय (दिल) रोग, बेरी-बेरी, यकृत (जिगर) रोग, खांसी, विष (जहर) के दुष्प्रभाव को दूर करता है। यूनानी चिकित्सा पद्धति के अनुसार पुनर्नवा दूसरे दर्जे की गर्म और रूक्ष होती है। यह गुर्दे के कार्यो में वृद्वि करके पेशाब की मात्रा बढ़ाती है, खून साफ करती है, सूजन दूर करती है, भूख को बढ़ाती है और हृदय के रोगों को दूर करती है। इसके साथ ही यह बलवर्द्धक, खून में वृद्धि करने वाला, पेट साफ करने वाला, खांसी और मोटापा को कम करने वाला होता है।
मात्रा : पुनर्नवा के पत्तों का रस 10 से 20 मिलीलीटर, जड़ का चूर्ण 3 से 5 ग्राम, बीजों का चूर्ण 1 से 3 ग्राम, पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) चूर्ण 5 से 10 ग्राम।
स्वाद : सफेद पुनर्नवा का रस पीने में मधुर (मीठा), तीखा और कषैला होता है।
स्वरूप : पुनर्नवा एक लेटी हुई छत्ताकार जड़ होती है, यह बारिश के मौसम में पैदा होकर बढ़ती है और हेमन्त ऋतु के तुषार से सूख जाती है। श्वेत सांठ के पत्ते, डंठल सफेद तथा लाल होते हैं। रक्त (लाल) के लाल होते हैं। लाल पुनर्नवा के पत्ते श्वेत की अपेक्षा चक्राकार न होकर कुछ लंबे होते हैं पुनर्नवा गांवों में सब्जी के काम में लाई जाती है। पुनर्नवा का पौधा 3 से 6 फुट ऊंचा होता है, जिसका तना लाल रंग लिए कड़ा पतला और गोल होता हैं। इसके जड़ों पर तना कुछ मोटा होता है। पुनर्नवा की शाखाएं अनेक और पत्ते छोटे, बड़े 2 तरह के होते हैं। पुनर्नवा के पत्ते कोमल, मांसल, गोल या अंडाकार और निचला तला सफेद होता है। इसमें पुष्प (फूल) सफेद या गुलाबी छोटे-छोटे, छतरीनुमा लगते हैं। फल आधा इंच के छोटे, चिपचिपे बीजों से युक्त तथा पांच धारियों वाले होते हैं। पुनर्नवा के फूलों और फलों की बहार सर्दी के मौसम में आती है। इसकी जड़ 1 फुट लंबी, उंगली जितनी मोटी, गूदेदार, 2 से 3 शाखाओं से युक्त, तेजगंध वाली तथा स्वाद में तीखी होती है। इसे तोड़ने पर इसमें से दूध बहने लगता है। औषधि प्रयोग के लिए इसकी जड़ और पत्ते काम में आते हैं।
स्वभाव : पुनर्नवा खाने में ठंडी, सूखी और हल्की होती है।
गुण : श्वेत पुनर्नवा भारी, वातकारक और पाचनशक्तिवर्द्धक है। यह पीलिया, पेट के रोग, खून के विकार, सूजन, सूजाक (गिनोरिया), मूत्राल्पता (पेशाब का कम आना), बुखार तथा मोटापा आदि विकारों को नष्ट करती है। पुनर्नवा का प्रयोग जलोदर (पेट में पानी का भरना), मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में परेशानी या जलन), घाव की सूजन, श्वास (दमा), हृदय (दिल) रोग, बेरी-बेरी, यकृत (जिगर) रोग, खांसी, विष (जहर) के दुष्प्रभाव को दूर करता है। यूनानी चिकित्सा पद्धति के अनुसार पुनर्नवा दूसरे दर्जे की गर्म और रूक्ष होती है। यह गुर्दे के कार्यो में वृद्वि करके पेशाब की मात्रा बढ़ाती है, खून साफ करती है, सूजन दूर करती है, भूख को बढ़ाती है और हृदय के रोगों को दूर करती है। इसके साथ ही यह बलवर्द्धक, खून में वृद्धि करने वाला, पेट साफ करने वाला, खांसी और मोटापा को कम करने वाला होता है।
मात्रा : पुनर्नवा के पत्तों का रस 10 से 20 मिलीलीटर, जड़ का चूर्ण 3 से 5 ग्राम, बीजों का चूर्ण 1 से 3 ग्राम, पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) चूर्ण 5 से 10 ग्राम।